Thursday, January 04, 2018

New Rakhigarhi gossip

The Hindi newspaper Dainik Jagaran has a story out today that purports to leak out the Rakhigarhi aDNA results.   The article goes into the current theory of how Indo-European languages entered India, and then the article says it is quoting Dr Neeraj Rai of the Birbal Sahni Institute (mentioned in a previous blog post) about the findings.

The key sentences:

लेकिन डॉ. नीरज राय के नेतृत्व में हरियाणा के हिसार, राखीगढ़ी आदि इलाकों में लगी अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने आनुवंशिक शोधों के आधार पर इस तथ्य को झुठला दिया है। अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित होने वाला शोध सामने आते ही पूरे विश्व में चर्चा, बहस और मंथन का नया दौर तो शुरू होगा ही मानव सभ्यता के वैश्विक इतिहास में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाएगा।

डॉ. राय बताते हैं कि डेक्कन कॉलेज, पुणे के कुलपति प्रोफेसर वसंत शिंदे ने हड़प्पा और अन्य स्थलों पर खुदाई का नेतृत्व किया है। इस दिशा में चल रहे शोधों के क्रम में उनकी अगुआई में पुरातत्वविदों की एक टीम ने सिंधु घाटी की सभ्यता में मिले सबसे महत्वपूर्ण शहर हरियाणा के हिसार में पड़ने वाले राखीगढ़ी साइट की खुदाई की। वर्ष 2014 की शुरुआत में उन्हें चार कंकाल मिले। इन कंकालों के डीएनए परीक्षण के लिए उन्होंने तब सीसीएमबी हैदराबाद और अब बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ के युवा वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय की टीम को लगाया।

डॉ. राय की टीम में देश-विदेश के अन्य वैज्ञानिकों ने मिलकर जो शोध हासिल किया, उससे पता चला कि राखीगढ़ी में मिले ये कंकाल उन प्रजातियों के पूर्वजों के हैं जो इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार की भाषाओं के वक्ता हैं और दुनिया में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ प्रजाति के रूप में घोषित करने का दावा करते रहे हैं। इन कंकालों के डीएनए उत्तर भारतीय ब्राह्मणों के डीएनए से काफी मैच करते हैं। 61 वर्षीय शिंदे के लिए, यह परियोजना पुरातत्व के एक लंबे और प्रतिष्ठित कैरियर की परिणति है। इस शोध के लगभग सारे परिणाम सामने आ चुके हैं। शीघ्र ही उनके प्रकाशन के बाद आर्य जातियों के आगमन, आक्रमण और प्रसार संबंधी विवादों पर भी विराम मिलने की संभावना है। 

The key point is that we are told that the Rakhigarhi aDNA matches significantly that of North Indian Brahmins.   This is interpreted in the article that the Rakhigarhi skeletons were of Indo-European language speakers. 

Of course, I'd advise waiting for the scientific publication.